भूमिका:
होली सिर्फ रंगों का नहीं, बल्कि भक्ति, प्रेम और आत्मा के रंगों का भी त्योहार है। यह कहानी एक ऐसे गाँव की है जहाँ रंगों से ज्यादा भक्ति का महत्व था। यह एक ऐसी अनसुनी कथा है, जिसे जानकर आपका मन भी भक्ति और प्रेम से सराबोर हो जाएगा।
भाग 1: रंगपुर गाँव की अनोखी परंपरा
गंगा के किनारे बसा रंगपुर गाँव अपनी अनोखी होली के लिए प्रसिद्ध था। इस गाँव की खासियत यह थी कि यहाँ रंग खेलने से पहले भगवान कृष्ण और राधा की विशेष पूजा होती थी।गाँव के राजा चंद्रसेन बड़े धर्मात्मा थे। उन्होंने एक नियम बनाया था कि जिसने सच्चे मन से भगवान की भक्ति की होगी, वही सबसे पहले होली खेलेगा।हर साल कोई न कोई श्रेष्ठ भक्त चुन लिया जाता, लेकिन इस बार एक अनोखी घटना घटने वाली थी…
भाग 2: गोपाल की भक्ति और गाँववालों की परीक्षा
गाँव में एक गरीब लड़का रहता था, जिसका नाम था गोपाल। वह यतीम था और मंदिर में साफ-सफाई का काम करता था।गोपाल के पास न अच्छे कपड़े थे, न पैसे। लेकिन उसकी एक खासियत थी – वह कृष्ण का सबसे बड़ा भक्त था। वह हर सुबह मंदिर जाकर घंटों भजन गाता।इस बार जब राजा ने पूछा कि “इस साल सबसे बड़ा भक्त कौन है?” तो गाँव के पंडितों और अमीर लोगों ने अपने-अपने नाम सुझाए। लेकिन तभी मंदिर के संत ने कहा:”गोपाल ही इस गाँव का सबसे सच्चा भक्त है। उसे होली खेलने का पहला अधिकार मिलना चाहिए!”यह सुनते ही गाँव के अमीर लोगों को गुस्सा आ गया। उन्होंने कहा, “एक गरीब लड़का कैसे सबसे बड़ा भक्त हो सकता है?”
राजा चुप रहे। उन्होंने कहा, “इसका निर्णय स्वयं श्रीकृष्ण करेंगे!”
भाग 3: भगवान कृष्ण की लीला
होली के दिन सुबह-सुबह मंदिर में श्रीकृष्ण की मूर्तियों को रंगों से सजाया गया। राजा, संत, पंडित और गाँव के सभी लोग इकट्ठा हुए।फिर राजा ने कहा, “जो सबसे पहले भगवान कृष्ण को रंग लगाएगा, वही सच्चा भक्त माना जाएगा!”अमीर लोग आगे बढ़े, लेकिन जैसे ही उन्होंने मूर्ति पर गुलाल चढ़ाना चाहा, रंग उड़कर गिर गया!फिर संत ने कहा, “अब गोपाल आए!”गोपाल डरते-डरते आगे बढ़ा। उसकी आँखों में श्रद्धा थी। उसने हाथ में गुलाल लिया और जैसे ही उसने श्रीकृष्ण की मूर्ति पर डाला, मूर्ति स्वयं रंगों से भर उठी!पूरा मंदिर हरे, नीले और गुलाबी रंगों से चमकने लगा।गाँव के लोग यह चमत्कार देखकर हैरान रह गए! राजा ने गोपाल को गले लगाकर कहा:”सच्ची भक्ति धन और पद से नहीं, प्रेम और श्रद्धा से होती है!”

भाग 4: प्रेम और भक्ति की जीत
उस दिन के बाद गाँव में एक नया नियम बना – “होली वही खेलेगा, जो प्रेम और भक्ति से भरा होगा!” अब किसी को अमीरी-गरीबी से नहीं, बल्कि दिल की सच्चाई से परखा जाता था।गोपाल की भक्ति ने यह साबित कर दिया कि सबसे पवित्र रंग प्रेम और श्रद्धा का होता है!
समाप्ति: सच्ची होली की सीख
यह कथा हमें सिखाती है कि होली सिर्फ बाहरी रंगों की नहीं, बल्कि आत्मा के पवित्र रंगों की भी होती है।अगर यह कहानी आपको अच्छी लगी, तो इसे अपने दोस्तों और परिवार के साथ ज़रूर शेयर करें!